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ओमप्रकाश 'सुमन' पूर्व प्रवक्ता स्मृति महाविद्यालय भीरा, लखीमपुर खीरी

मानस में तुलसी का नारी के प्रति दृष्टिकोण


मानस के रचयिता तुलसीदास पर नारी निंदा को लेकर अनेक आक्षेप लगते रहे हैं। पर इन आरोपों के संबंध में हमें तत्कालीन समाज की सामाजिक एवं पारिवारिक स्थिति का भी आकलन करना चाहिए। तुलसी ने सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार नारी के विभिन्न रूपों का चित्रण किया है तुलसी से पूर्व प्राचीन काल में नारियों का सम्मान होता था इसी का उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है ” यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: । यत्रैतास्तु न पूज्यंते सर्वास्तत्राफला: क्रिया ।। ( जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है उनका सम्मान नहीं होता है वहां किए गए समस्त अच्छे कार्य निष्फल हो जाते हैं ) पर समय के बदलाव के साथ नारी सम्मान में क्षीणता आ गई ।पुरुष वर्ग ने स्वार्थ भाव स्वाभिमान एवं अहं के कारण नारियों पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। उनका जीवन बहुत ही संकीर्ण दायरे में रह गया ।मुगलकालीन यंत्रणाओं व धर्म संकट से उनकी दशा और भी विषम हो गई ।

  तुलसी ने नारी  के सभी आयु वर्गों के चित्रण में कन्या ,युवती एवं पत्नी सहित सभी स्त्रियों का चित्रण किया है। विभिन्न स्थितियों में भी  सीता पातिव्रत धर्म का निर्वाह करती है इसके अलावा मानस में मातृत्व पद की भी प्रतिष्ठा की गई है  "पुत्रवती युवती जग  सोई , रघुवर भगत जासु सुत होई ।" (संसार में वही युवती स्त्री  पुत्रवती है  जिसका पुत्र श्री रघुनाथ जी का भक्त हो)

मानस में नारियों के अन्य रूपों का भी चित्रण मिलता है पर तुलसीदास पर नारी निंदा के आरोप मानस की कुछ चौपाइयों को लेकर ही लगाए जाते हैं मानस में तुलसी पर निंदा के आरोपों की दृष्टि से तीन स्थल मिलते हैं। इनमें कहीं पर नारी ने ही नारी की निंदा की है कहीं पर पुरुषों ने की है कहीं पर राम के द्वारा ही निंदा कराई गई है मानस के बालकाण्ड में शंकर पार्वती के विवाह में पार्वती जी की मां मैना ही नारियो, की दशा का वर्णन करते हुए कहती हैं “कत विधि सृजीं नारि जग माही, पराधीन सपनेहुं सुख नाही ।” पार्वती के विदाई के समय उनकी मां मैना पार्वती को छाती से चिपका लेती हैं और कहती हैं – (विधाता ने जगत में स्त्री जाति को क्यों पैदा किया है पराधीन को सपने में भी सुख नहीं मिलता है।)

 मानस की अरण्यकांड में शबरी अपनी  दीनता स्वयं प्रदर्शित करते हुए कहती है -"केहि विधि अस्तुति करौं तुम्हारी  अधम जाति मै जड़मति नारी" । इससे शबरी हाथ जोड़कर कहती है (मैं किस प्रकार आप की स्तुति करूं मैं नीच जाति की अत्यंत मूढ़ बुद्धि हूँ) यद्यपि  वह राम के सामने भक्तों के रूप में अपनी दशा का वर्णन करती है।

दूसरा स्थल वह आता है जब अयोध्या काण्ड में कैकयी ने दशरथ से बर मांग कर राम को बनवास भेज दिया । अवधपुरी निवासी वहां के नर नारी सभी लोग महिला कैकेयी की निंदा करते हुए कहते हैं -“का न पावकु जारि सक ,का न समुद्र समाइ, । का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ ।।” (आग क्या नहीं जला सकती है समुद्र में क्या नहीं समा सकता है अबला कही जाने वाली प्रबल स्त्री क्या नहीं कर सकती है जगत में काल किस को नहीं खाता है।)

यहाँ अयोध्यावासियों ने केवल कैकेयी की निंदा की है नारी समाज की निंदा नहीं की है।

 "ढोल गॅवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी ।" तुलसी की नारी निंदा में इस चौपाई का सबसे अधिक नाम लिया जाता है। इस चौपाई का प्रसंग है सुंदरकांड के अंत में समुद्र राम से क्षमा मांगते हुए कहता है आपने जो मुझे शिक्षा दंड दिया है मर्यादा जीवो का स्वभाव भी आपकी ही बनाई हुई है। ढोल गॅवार शूद्र पशु और स्त्री यह सब शिक्षा के अधिकारी हैं। यह चौपाई समुद्र द्वारा तब कही  गई जब समुद्र द्वारा राम की विनय न मानने पर राम क्रोधित हो गये। उन्होंने तरकस से बांण निकालकर धनुष पर रखा था कि समुद्र प्रार्थना करते हुए कहता है आपने मुझे जो शिक्षा दी यह वर्ग विशेष शिक्षा देने योग्य होता है।                           ताड़ना अवधी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पहचानना परखना ध्यान देना  है यदि हम ढोल की आवाज को पहचानेंगे नहीं तो उसकी ध्वनि सही नहीं होगी उसका ताड़ना जरूरी है।  गॅवार का अर्थ  है अज्ञानी इसी तरह  नारी, पशु आज के स्वभाव की भी पहचान भी आवश्यक है अर्थात इनके व्यवहार को ठीक से समझना चाहिए। ताड़ना का अर्थ  पीटना लगाना गलत है।  

काम क्रोध लोभादि मद, प्रबल मोह कै धारि । तिन्ह महँ अति दारुन दुखद माया रूपी नारि ।। श्रीराम अरण्यकाण्ड में नारद को उपदेश देते हुए कहते हैं ( काम क्रोध लोभ और मद आदि मोह (अज्ञान )की प्रबल सेना है इसमें माया रूपिणी( माया की साक्षात मूर्ति) स्त्री तो अत्यंत दारुण दुख देने वाली है ) “अवगुन मूल सूल प्रद प्रमदा सब दुख खानि” में श्रीराम नारद से कहते हैं (युवती स्त्री अवगुणो की मूल पीड़ा देने वाली और सब दुखों की खान है।) यह सब कथन विशेष व्यक्ति एवं विशेष संदर्भ में है न की समग्र नारी जाति के लिए हैं। प्रमदा नारी की विशेष स्थिति है नारद वैराग्य साधक थे अतः सन्यासी वानप्रस्थ और वैराग्य साधकों के लिए यह उनके पथ की अवरोधक है। सभी समाज के लिए नहीं। शबरी से श्रीराम ने नवधा भक्ति में कहा था कि एक प्रकार की भक्ति जिनमें है वह मुझे अति प्रिय है – “सोय अतिसय प्रिय भामिनि मोरे ,सकल प्रकार भगति दृढ़ तोरे । नारी के प्रति तुलसी के दृष्टिकोण का हम इन चौपाइयों में भी समझ सकते हैं ।”जननी सम जानहि पर नारी, “तिनके मन सुभ सदन तुम्हारे ” धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपद काल परखिए चारी ।अरण्यकांड में मुनि अत्रि की पत्नी अनुसुइया जी सीता को आशीष देते कहती हैं धीरज धर्म मित्र और पत्नी की परीक्षा विपत्ति के समय में की जा सकती है। मनुष्य के अच्छे समय में तो सभी साथ देते हैं फिर खराब स्थिति में जो साथ दे वही अपना सच्चा साथी है। पत्नी को भी इसमे में रखा गया है। तुलसी तो ‘सीय राम मैं सब जग जानी’ को मानने वाले हैं वह नर और नारी के को सामान स्थान देते हैं उन पर निंदा के आरोप उचित नहीं है उन पर जिन्होंने आरोप लगाया है उन्होंने तुलसी का समग्र अध्ययन नहीं किया है किसी विशेष नारी की निंदा नारी समाज की निंदा नहीं है।


ओमप्रकाश ‘सुमन’ पूर्व प्रवक्ता स्मृति महाविद्यालय भीरा, लखीमपुर खीरी

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