नशाखोरी एक दुर्गुण ही नहीं रोग है- महात्मा गांधी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था ‘नशाखोरी एक दुर्गुण ही नहीं एक रोग है। नशीली वस्तुएं और शराब शैतान के दो हाथ है जिससे वह अपनी असहाय गुलामों को ढूंढता और नशे में धकेल देता है।’ उन्होंने नशे की प्रवृत्ति से दूर रहने तथा आदर्श जीवन जीने का जो संदेश समाज को दिया है। उनका अनुसरण कर एक स्वस्थ एवं समृद्ध समाज का निर्माण किया जा सकता है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में माता-पिता, शिक्षक का मार्गदर्शन मिले तो नशे की दुष्प्रवृति को जड़ से समाप्त किया जा सकता है। हम सभी का यह दायित्व बनता है कि युवा पीढ़ी को नशे के दुष्प्रभाव के संबंध में जागरूक बनाए ताकि वे कभी-भी मादक द्रव्यों के सेवन की ओर आकर्षित न हो।
युवा शक्ति हमारे देश की सबसे बड़ी शक्ति है। युवा शक्ति को रचनात्मक कार्यों में लगाना तथा शिक्षक के आरंभिक काल में भटकाव भरी प्रवृत्तियों से दूर रखना, समाज का सबसे बड़ा कर्तव्य है। पश्चिमी सभ्यता ने हमारे देश किस तरह अपनी ओर आकर्षित किया, इससे हम सभी भली भांति परिचित है। देश के युवा भारतीय संस्कृति छोड़ पाश्चात्य संस्कृति के पीछे भागते है। भारत देश की मुख्य समस्याओं में से एक युवाओं में फैलती नशाखोरी भी है। देश की जनसंख्या आज 140 करोड़ के पार होते जा रही है, इस जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवा वर्ग का है। नशा एक ऐसी समस्या है, जिससे नशा करने वाले के साथ -साथ, उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है। गांजा, भांग से इन्सान का दिमाग खराब होने लगता है, इससे वो पागल भी हो सकता है। परिवार टूट जाते है। नशेबाज इंसान अपने परिवार से ज्यादा अपने नशे को तवज्जो देते है, जिससे परिवार टूट जाते है. नशाखोरी, आज के समय में परिवार बिखरने की सबसे बड़ी वजह है। नशे के चलते पति-पत्नी में झगड़े बढ़ते है, जिसका असर बच्चों पर भी होता है।
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भौतिकवाद और आधुनिकता की अंधी दौड़, आज युवकों को अपने आकर्षण के मायाजाल में फंसा कर पथभ्रष्ट कर रही है। इसमें वास्तविकता से दूर जाने एवं क्षणिक सुख के लिए मानव विशेषकर युवा मादक द्रव्यों के आदी हो जाते हैं। नशे का आदी व्यक्ति स्वयं तो अपना नुकसान करता ही है साथ ही अपने परिवार व समाज को भी नुकसान पहुंचाता है। ऐसा व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आर्थिक तौर पर असहाय एवं कमजोर बन जाता है। एक समय ऐसा आता है जब व्यक्ति चाहकर भी नशे का सेवन छोड़ने में अपने को असमर्थ पाता है। वैसे लोगों के चेहरे पर जवानी में ही बुढ़ापे की झुर्रियां पड़ जाती है। समाज परिवार उसे तिरस्कृत कर देता है। वह समाज में हास्य का विषय बन जाता है। सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं। औपचारिकता के तौर पर इलाज कराया जाता है। इस तरह से वह अपनी सेहत खो बैठता है और खोई हुई सेहत को पाने के चक्कर में अपना पैसा भी। इस प्रकार सेहत और रुपया दोनों चला जाता है। नशेड़ी व्यक्ति अपनी लीला समाप्त कर बैठता है। इसका परिणाम उसके निर्दोष बच्चों पर भी पड़ता है। क्या इससे भी ज्यादा कोई हास्यास्पद बात होगी कि एक व्यक्ति यह जानते हुए कि यह काम गलत है। स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। फिर भी बार-बार उस गलती को दुहराता जाता है। वस्तुतः अपने दोषों को देखना अपनी कमजोरियों को पहचानना बहुत बड़ी बात है। जब तक बुराई का एहसास नहीं होता, वह छूट नहीं सकती। इससे बचने के लिए व्यक्ति को सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए नशा मुक्त समाज का होना आवश्यक है। इससे बचने के लिए व्यक्ति को निश्चल एवं निष्कपट भाव से आत्मप्रेक्षा करें कि मेरे भीतर क्या-क्या बुराइयां हैं। जब इन गलतियों से परिचय हो जाए तो व्यक्ति इन्हें छोड़ने के लिए संकल्पित बने। सब बुराइयों को एक साथ न छोड़ सके तो उसके लिए क्रमिक अभ्यास करना चाहिए।
आज बापू के मुखारविंद से निकली हुई एक-एक बात हमारे मजबूत इरादों का अक्षय स्तंभ है। हमें उनके विचारों को आत्मसात करना होगा। उस दार्शनिक अर्धनग्न फकीर की बातों पर अमल करके ही देश स्वाधीन हुआ और आज हम विकसित देश की श्रेणी में गिने जाएंगे। नशा का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में सभी प्रकार की कैंसर में से आधे से अधिक मामले मुँह एवं गले के कैंसर के होते हैं जिसका मुख्य कारण सिगरेट, तंबाकू व गुटखा पान मसाला इत्यादि का सेवन करना है। तंबाकू में लगभग 500 रसायन पाए जाते हैं जो मनुष्य के लिए हानिकारक है। इन रसायनों में से भी 50 ऐसे हैं जो कैंसर का कारण बनते हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार समूचे विश्व में लगभग धूम्रपान करने वाले व्यक्ति द्वारा छोड़े गए धुंआ का शिकार होते हैं जिससे ऐसे व्यक्तियों में भी मुंह वाले एवं फेफड़ों के कैंसर के शिकार होते हैं। धूम्रपान के कारण गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांग हो सकता है। तंबाकू, पान मसाला, गुटखा इत्यादि में पाए जाने वाले हानिकारक रसायन कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, रक्तचाप तथा रक्त नालियों की संकीर्णता बढ़ाते हैं और इसके सेवन से कैंसर होने की संभावना 25 गुना बढ़ जाती है। धूम्रपान करने वाले व्यक्ति की पत्नी और बच्चों को पैसिव स्मोकिंग के कारण हृदय रोग होने की संभावना अन्य लोगों की तुलना में 91% अधिक होती है। नशे के आदी व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता अन्य की तुलना में आधी रह जाती है।
शराब और सिगरेट पीने वाले लोगों को कोरोना का संक्रमण होने का खतरा दूसरे लोगों से 14 प्रतिशत ज्यादा होता है। धूम्रपान करने वाले मरीजों को ज्यादा देखभाल और वेंटिलेशन की जरूरत होती है। हार्ट की समस्याएं और कैंसर जैसी बीमारियां सीधे तौर पर धूम्रपान से जुड़े हैं, जो लोग स्मोकिंग करते हैं, उनके फेफड़े पहले ही ठीक तरह से काम नहीं करते है। ऐसी स्थिति में कोरोना वायरस फेफड़ों पर आक्रामक रूप से हमला करता है। इससे मरीज की स्थिति ज्यादा खराब हो जाती है। हालांकि अभी लाखों लोगों ने कोरोना की वजह से धूम्रपान छोड़ दिया है। ऐसे लोगों के फेफड़ों के स्वास्थ्य में सुधार होने लगता है। इससे आपको कोरोना के संक्रमण में ज्यादा जटिलताओं का खतरा नहीं होता है। वहीं शराब पीने वालों को भी कोरोना से ज्यादा खतरा है। ऐसे लोगों की इम्यूनिटी शराब पीने से काफी कमजोर हो जाती है और वायरस इन्हें जल्दी अपनी चपेट में ले लेता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लगभग 1.3 बिलियन लोग तंबाकू उत्पाद का सेवन करते हैं। इससे 1.2 मिलियन व्यस्क एवं 65 हजार बच्चों की मृत्यु प्रत्येक वर्ष हो जाती है। शराब की वजह से दुनिया भर में 30 लाख लोगों की मौत प्रत्येक वर्ष हो जाती है। आज 20 में से 1 मौत का कारण शराब ही होती है। इसके कारण हर साल 2.6 लाख भारतीयों की मौत होती है।
विश्व में प्रत्येक दिन 6000 लोग शराब की वजह से मरते हैं, जो सिर्फ अखबारों में सुर्खियां बन रह जाती है। विश्व में 23.7 करोड़ पुरुष और 4.6 करोड़ महिला शराब से जुड़ी समस्या का सामना कर रही हैं। इनमें ज्यादातर यूरोप और अमेरिका में रहने वाले हैं। हालांकि कोविड के प्रभाव के कारण 10% की कमी आई है। देशभर में 1 मई 2004 से तंबाकू नियंत्रण कानून लागू हुआ है जिसके तहत सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेधाज्ञा लागू तथा सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पादों के विज्ञापन पर रोक लगी है। इस कानून के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को सिगरेट और तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंध किया गया है। कानून के प्रावधानों का उल्लंघन अपराध एवं नशीले पदार्थ अधिनियम के तहत नशे के प्रयोग में आने वाली आपत्तिजनक वस्तुओं के साथ पकड़े जाने कानूनी कार्यवाही की जाती है जिसमें कम से कम 10 वर्ष एवं ₹ 1 लाख तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है। शराब पीकर उत्पात अत्यधिक नशे की हालत में पाए जाने पर पुलिस अधिनियम की धारा 34 और आबकारी अधिनियम के तहत सजा होती है। अभी-भी सावधान हो जाने का समय है। नशे का सेवन घातक है। यह व्यक्ति को मानसिक रूप से मानसिक रोगी बना देता है। इसके कारण दुर्घटनाएं बढ़ जाती है। पारिवारिक कलह और झगड़ों में बढ़ोतरी होती है। व्यक्ति को चोरी, डकैती, व्यभिचार, तस्करी और आतंकवाद जैसे अपराधों की ओर ले जाता है। नशा व्यक्ति की रचनात्मकता को समाप्त कर देता है।
नशे से बचाव के लिए हमें दृढ़ इच्छाशक्ति होना चाहिए। पारिवारिक सहयोग विकसित करना होगा। महान पुरुषों एवं संतों की शिक्षाओं का अनुसरण, जीवन में लक्ष्य व ज्ञान प्राप्ति, रचनात्मक कार्य, खेलों के प्रति रुझान पर विशेष ध्यान देना होगा। तभी हम अपने को स्वस्थ रख पाएंगे और पूज्य बापू के सपनों को साकार करने में सफल होंगे।
नशा मुक्ति की पहल लगातार वैश्विक स्तर पर किया जाता रहा है। देखा जाए तो नशा करने वाले लोगों की संख्या विश्व स्तर पर बहुत ज्यादा है। ऐसे लोग समाज में कई बार खतरा बन जाते हैं। इसलिए नशा को छुड़ाना आवश्यक है। इसके लिए कुछ घरेलू नुस्खे आजमा सकते हैं। संतरा और नीबू के रस तथा सेव, केला आदि के सेवन से अल्कोहल की वजह से शरीर में जमा जहर कम हो जाता है। खजूर काफी फायदेमंद रहता है। 3-4 खजूर को आधे गिलास पानी में रगड़कर देने से शराब की आदत छोड़ने में मदद मिलती है।धूम्रपान करना बिल्कुल बंद कर दें। धूम्रपान से अल्कोहल लेने की इच्छा प्रबल होने लगती है। आधा गिलास पानी और समान मात्रा में अजवाइन से बने रस को मिलाकर रोजाना एक महीने तक पीने से काफी फायदा मिलता है। इस प्रकार, सशक्त राष्ट्र के निर्माण के लिए नशा मुक्त समाज का होना आवश्यक है।
~ डॉ. नन्द किशोर साह
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