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“जियो और जीने दो” : भवानी प्रसाद मिश्र

~ देवेश त्रिपाठी पत्रकार

हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च 1913 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया ग्राम में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित सीताराम मिश्र शिक्षा विभाग में अधिकारी थे वह साहित्य प्रेमी भी थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा सोहागपुर, होशंगाबाद, नरसिंहपुर व जबलपुर में संपन्न हुई ।1935 में इन्होंने जबलपुर से बीए की उपाधि प्राप्त की। 15 -16 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने कविता लेखन शुरू कर दिया था।1930 से उनकी कुछ कविताएं पंडित ईश्वरी प्रसाद शर्मा के संपादन में निकलने वाले ‘हिंदू पंच ‘में प्रकाशित हो रही थीं ।1932 -33 में वह माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आ गये और उनकी कविताएं ‘कर्मवीर’ ने प्रकाशित होती रही। ‘हंस’ पत्रिका में भी इनकी कविताएं प्रकाशित हुईं। कविता के क्षेत्र में अज्ञेय द्वारा संकलित ‘तार सप्तक द्वितीय’ में उनको पहले नंबर पर चयनित किया गया।


   वह गांधी की विचारधारा से बहुत प्रभावित थे गांधी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने के कारण 1942 में जेल भी जाना पड़ा। जेल में 2 वर्ष 8 माह 8 दिन का समय विताया उन्होंने जेल में भी कई रचनाएं की। वह 1945 में जेल से छूटे। अपनी जीविका के लिए प्रयास में उन्होंने विद्यालय की भी शुरुआत की। 1940 से 1950 तक महिला आश्रम वर्धा में शिक्षक रहें 1952 से 1955 तक हैदराबाद में ‘कल्पना’ मासिक पत्रिका का संपादन भी किया। सिनेमा के लिए मद्रास के एबीएम से संवाद निर्देशन का कार्य किया बाद में वह मुंबई आ गए 1956 से 1958 तक आकाशवाणी का संचालन कार्य भी किया। 1958 से 1972 तक मिश्र जी गांधी प्रतिष्ठान, गांधी स्मारक निधि और सर्व सेवा संघ से जुड़े रहे।

अब हम उनकी हिंदी साहित्य को दी गई सेवा पर विचार करते हैं उन्होंने हिंदी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों को अपनाया है। उनकी लगभग 22 पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है इनकी मुख्य पुस्तकों में ‘गीत फरोश’, ‘बुनी हुई रस्सी’, नीली रेखा तक ,मानसरोवर, अनाम तुम आते हो ,त्रिकाल संध्या, चकित है दुख, कालजयी, खुशबू के शिलालेख, शरीर कविता फसले और फूल, परिवर्तन जिए ,अंधेरी कविताएं के साथ ही बाल साहित्य संस्मरण पर व निबंध में भी रचनायें कीं। उनका पहला काव्य संग्रह “गीत फरोश ” जो बहुत ही चर्चित रहा उनके गीतों ने आधुनिक हिंदी साहित्य को नई दिशा प्रदान की। अपनी नई शैली और नई उद्भावना और नवीन पाठ प्रवाह के कारण वह बहुत ही लोकप्रिय रहे। क्योंकि वह देश की गुलामी के लिए लड़े और बाद में तानाशाही के लिए भी लड़े।

मिश्रा जी हिंदी की नई काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं किंतु हिंदी का भी क्षेत्र में प्रवेश करने के साथ ही उनमें नई कविता रचने का उन्मेष हुआ। आरंभ में गांधी दर्शन के सजग अध्येता और अनुयायी थे और उन्होंने उसके प्रभाव के अंतर्गत अनेक रचनाएं भी की । गीत फरोश में संग्रहीत उनकी नई रचनाएं स्वतंत्रता युद्ध में रत संघर्षशील किशोर ह्रदय की राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है ऐसी रचनाओं के अतिरिक्त उनकी ऐसी रचनाएं भी मिलती हैं जो एक और छायावादी काव्य प्रवृत्तियों से संपन्न है तो दूसरी और उसमें युग परिवेश से आकुल युवा हृदय का भी विक्षोभ और विद्रोह मुखरित हो उठा है। इस प्रकार उन्होंने गांधीवाद तथा प्रगतिवाद के प्रभाव ग्रहण कर हिंदी का क्षेत्र में प्रवेश किया कि अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के कारण अपनी काव्य प्रतिभा को किसी वाद के खूंटे से नहीं बांधा।

उनकी कविताओं में जीवन के विविध रंग प्रश्न और समाधान अभिनव ढंग से प्रस्तुत हुए हैं। सप्तकों से नई कविता यात्रा आगामी कविता के संकुलों में भवानी प्रसाद मिश्र अपनी अलग पहचान रखते हैं। समाज राजनीति विचारधारा प्रकृति प्रेम और मनुष्य के अस्तित्व को लेकर लिखी हुई कविताएं हृदय को उद्वेलित कर देती हैं। मिश्र जी गांधी युग के तपस्वी साधक हैं और गांधी शांति प्रतिष्ठान से संबंध रहे ‘गांधी मार्ग’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन करते रहे । गांधी शताब्दी समारोह के अवसर पर भी अपना काव्य संग्रह ‘पंचशती’ लेकर उपस्थित हुए थे इस काव्य संग्रह के माध्यम से उन्होंने गांधीजी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की है ।गांधीजी ने दंड शक्ति के स्थान पर प्रेम शक्ति और राज्य शक्ति के स्थान पर लोक सत्य पर बल दिया था। भवानी प्रसाद मिश्र ने भी अपनी कविता में इसी पर बल दिया है “जियो और जीने दो, प्रभु बरसा रहे हैं जो सुधा सो सब को पीने दो”।


     काव्य रचना में उन पर छायावादी प्रेम का रंग है और वह भी मानव जीवन की मंगल कामना से ओतप्रोत है उनकी कविता कमल के फूल में प्रेम की भावना को इस तरह व्यक्त किया है इस कविता में कमल प्रेम भावना का प्रतीक है। “फूल लाया हूं कमल के क्या करूं इनका , पसारें आप आंचल छोड़ दें हो जाये जी हल्का।”


मिश्र जी ने प्रकृति के प्रति भी अपना प्रेम प्रदर्शन किया है और उस पर उनके व्यक्तित्व का इतना गहरा रंग चढ़ा हुआ है कि वह अतुलनीय है। उनके प्रकृति चित्रण में प्राकृतिक पदार्थों, प्राकृतिक दृश्य, उनके कार्य कलाप तथा उनके सरस व भयंकर रूपों का वर्णन सुंदर कलात्मक ढंग से किया है। सतपुड़ा
 के जंगल और नर्मदा के चित्र प्रकृति का भव्य रूप हैं। सतपुड़ा के जंगल बारे में कवि लिखता है “सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से- ऊंघते अनमने जंगल ।”


 मिश्र जी ने अपने काव्य में व्यंग शैली का भी प्रयोग किया है उनकी रचना चकित हैं दुख में एक ही व्यंग प्रधान कविता है “मैं जड़ हो जाना चाहता हूं।”कवि का कहना है “बैठकर खादी की गादी पर ढलती हैं प्यालियां, भाषण होते हैं अंग्रेजी में गांधी पर ,बजती है जोर-जोर से तालियां।”


    हिंदी के प्रसिद्ध कवि का निधन 20 फरवरी 1985 नरसिंहपुर मध्य प्रदेश में एक विवाह समारोह में गए थे वही हो गया था। महान कवि को उनकी सेवाओं के लिए अनेक पुरस्कार मिले जिनमें 1972 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ,1982 में उत्तर प्रदेश के हिंदी संस्थान के द्वारा संस्थान सम्मान समारोह प्रदान किया गया ,1983 में मध्यप्रदेश शासन द्वारा शिखर सम्मान प्रदान किया गया। 20 फरवरी 1985 को उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।

आज हमारे बीच में भवानी प्रसाद मिश्र नहीं है पर इनका साहित्य हिंदी जगत को उनकी याद दिलाता रहेगा।
~ देवेश त्रिपाठी पत्रकार

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