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बुद्ध पूर्णिमा पर क्यों विशेष है यह बैशाख की पूर्णिमा?

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बुद्ध पूर्णिमा 12 मई 2025 को भगवान गौतम बुद्ध की 2588 वीं जयंती बैशाख की पूर्णिमा को मनाई जा रही है
इसे बैशाख दिवस व अन्य नामों से बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के रूप में भी मनाया जाता है । बुद्ध पूर्णिमा गौतम बुद्ध की स्मृति में भारत, नेपाल, तिब्बत, चीन, थाईलैंड ,म्यांमार और अन्य एशियाई देशों सहित बौद्ध समुदाय व हिंदुओं के द्वारा पूरे विश्व में मनाई जाती है।


बैशाख माह की पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और बैशाख माह की पूर्णिमा के दिन ही उन्हें बोधगया में पीपल वृक्ष (बोधि वृक्ष) के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था और बैशाख में पूर्णिमा के ही दिन उन्हें 80 वर्ष की आयु में महानिर्वाण प्राप्त हुआ था।


गौतम बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ गौतम था गौतम इनका गोत्र था इनका जन्म 563 ईसा पूर्व लुंबिनी ,(वर्तमान में नेपाल )में शाक्य वंशके राजा शुद्धोधन और रानी महामाया के पुत्र के रूप में हुआ था । जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माता महामाया का निधन हो गया जिसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था। सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र के पास वेद और उपनिषद की शिक्षा प्राप्त की तथा राज काज युद्ध विद्या की शिक्षा ली, कुश्ती , घुड़दौड़ ,तीर कमान व रथ हांकने में उनकी कोई बराबरी नहीं कर पाता था। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह यशोधरा से हुआ तथा राहुल नाम का एक पुत्र भी उत्पन्न हुआ। राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए राजमहल संबंधी सभी इंतजाम कर दिए थे। तीन ऋतुओं मे हर ऋतु के अनुसार रहने लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए नाच -गाना और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई ,दास -दासी सेवा में रख दिए गए पर यह सब चीजें सिद्धार्थ को संसार में बांधकर नहीं रख सकीं।


बसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया उसके दांत टूटे थे, बाल पक गए थे शरीर टेढ़ा हो गया हाथ में लाठी पकड़े सड़क पर वह धीरे-धीरे कांपता हुआ चल रहा था। दूसरी बार जब बगीचे की सैर को निकले तो उनकी आंखों के सामने एक रोगी आ गया उसकी सांसे तेजी से चल रही थी, कंधे ढीले पड़ गए बाहें सूख गईं थीं, पेट फूल गया था वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली , चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे पीछे बहुत से लोग थे कोई रो रहा था कोई छाती पीट रहा था। इन दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ का मन विचलित हो गया उन्हें जीवन की निष्क्रियता का दर्शन हुआ। चौथी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले तो एक संन्यासी दिखाई पड़ा संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त, प्रसन्न चित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया।


संसार की वास्तविकता को जानकर 29 वर्षीय सिद्धार्थ ने घर परिवार राज पाट सब छोड़कर तपस्या के लिए चल दिए वह राजगृह पहुंचे और भिक्षा मांगी। सिद्धार्थ भ्रमण करते-करते सन्यासी ब्राह्मण संत आलार कलाम जो शांख्य दर्शन के विशेषज्ञ थे के पास पहुंचे तथा ज्ञान के उच्चतर स्तर को प्राप्त उद्दक रामपुत्त दोनों से सिद्धार्थ ने शिक्षा प्राप्त की और योग साधना सीखी समाधि लगाना सीखा पर उससे उन्हें संतोष नहीं हुआ। वह उरुवेला पहुंचे और वहां पर तरह-तरह की तपस्या करने लगे कम आहार लेने से उनका शरीर सूखकर कांटा हो गया।


सिद्धार्थ को तपस्या का फल नहीं मिला पर वह समझ गए की नियमित आहार -विहार से योग सिद्ध होता है और उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया तथा कठोर तपस्या की। बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कलाम थे उन्होंने सन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की । 35 वर्ष की आयु में बैसाख पूर्णिमा के दिन पीपल वृक्ष के नीचे वह ध्यान मग्न हो गए। बुद्ध ने बोधगया में निरंजन नदी के तट पर कठोर तपस्या की तथा सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा था। समीपवर्ती गांव की एक सुजाता स्त्री को पुत्र प्राप्त हुआ वह बेटे के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुंची थी। सिद्धार्थ वहां बैठे ध्यान कर रहे थे उसे लगा कि वृक्ष देवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर सहित उपस्थित हों। सुजाता ने बड़े आदर के साथ सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा कि जैसी मनोकामना मेरी पूरी हुई है उसी तरह आपकी भी हो। उसी रात ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई उन्हें सच्चा बोध ईसा पूर्व 531 में प्राप्त हुआ। तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधि वृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती स्थान बोधगया हो गया।


गौतम बुद्ध ने 80 वर्ष‌ की उम्र तक संस्कृत के बजाय पालीभाषा में धर्म का प्रचार किया। संस्कृत विद्वानों की भाषा थी जबकि पाली भाषा जन सामान्य की लोकभाषा थी। उनके सीधे सरल धर्म की लोकप्रियता बढ़ने लगी और धर्म का तेजी से प्रचार हुआ। चार सप्ताह तक बोध वृक्ष के नीचे रहकर धर्म चिंतन किया और वह आषाढ़ पूर्णिमा के दिन काशी के पास मृगदावं स्थान (वर्तमान में सारनाथ) पहुंचे वहीं पर सर्वप्रथम धर्म उपदेश दिया।


महात्मा बुद्ध ने अपने जीवनकाल में अनेक उपदेश दिए पर उनके 10 उपदेश बहुत प्रमुख माने जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं । मध्यम मार्ग- महात्मा बुद्ध ने हमेशा मध्यम मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया जो अत्यधिक सुख और अधिक दुख के बीच का मार्ग है इसका उद्देश्य न तो अधिक भोगवाद है न अत्यधिक तपस्या बल्कि संतुलित जीवन जीने का मार्ग है। चार आर्य सत्य महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य इस प्रकार समझे जा सकते हैं दुख जीवन में दुख हमेशा बना रहेगा हर इंसान को कभी-कभी दुख का सामना करना पड़ता है जैसे बुढ़ापा ,बीमारी और मृत्यु दुख का कारण है । दुख का कारण- हमारी इच्छाएं तृष्णा और वासनाएं है। जब हम बहुत कुछ चाहते हैं किसी चीज के लिए मन अटका रहता है तो दुख पैदा होता है। तृष्णा आसक्ति लालसा ही दुख के कारण हैं दुख का अंत का सत्य दुख को समाप्त किया जाय इसका अंत संभव है इसे निर्वाण कहा जाता है। दुख के अंत की ओर ले जाने वाला मार्ग अष्टांगिक मार्ग है।


गौतम बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग है जो जीवन में सुख और शांति की ओर ले जाता है इसके आठ अंग है 1- सम्यक दृष्टि -( चार आर्य सत्यों दु ख , दुख का कारण, दुख का अंत को समझना) 2- सम्यक संकल्प सही दृष्टि से प्रेम करुणा के साथ जीवन जीने का संकल्प लेना। 3-सम्यक वचन झूठ ,असत्य ,कटु भाषण और व्यर्थ की बातों से बचना ।


4-सम्यक कर्म – हिंसा, चोरी व्यभिचार से बचना और दया ईमानदारी और निष्पक्षता से कार्य करना।5- सम्यक आजीविका- ऐसा काम करो जिससे दूसरों को नुकसान न पहुंचे ,और समाज के लिए उपयोगी हो। 6-सम्यक प्रयास बुरी आदतों को छोड़ने और अच्छी आदतों को विकसित करने का प्रयास करना। 7- सम्यक् स्मृति ध्यान और जागरूकता के साथ अपने विचारों ,भावनाओं और कार्यों पर ध्यान देना ।8-सम्यक समाधि – ध्यान और एकाग्रता के माध्यम से मन को शांत व एकाग्र करना।

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